* ये जीवन दो दिन का मेला *
मन काहे का गुमान करे,
ये जीवन दो दिन का मैला
फिर मन काहे फूला-फूला
इतरायें क्यूं तन पर भूला
ये जीवन दो दिन का मेंला
फिर क्यूं अपनों में फूला
दुनियां का है खेल निराला
वहम सभी ने ऐसा पाला
हम बडा है हम बडा हैं
औरन छोटा और हम बडा
तन में है मेहमान मन
जाना इक दिन पहचान
आना जाना इस दुनियां में
सब माया-खेल समझना
नाम प्रभु का ले ले मनवा
वरना जग रह जाये अकेला
इस जग में ना कोई अपना
जान ले केवल इसको सपना
दुनियां है दो दिन का मेंला
खेल-खेल बीत जायेगा चेला
मन काहे का गुमान करे
ये जीवन दो दिन का मेला ।।
?मधुप बैरागी