ये जीवन एक तमाशा है
ये जीवन हकीकत नहीं बस एक तमाशा है,
कोई लिखता है अपनी कहानी और,
हमको किरदार बनाकर नचाता है ।।
हम कभी खुश तो कभी गमगीन होते हैं,
कभी बेबात हँसते तो कभी बेबात रोते हैं,
हमको लगता है ये सब हम ही करते हैं,
नहीं कठपुतली के हाथ पैर कोई घुमाता है ।।
दिल लग जाते हैं हमारे एक दूसरे से,
प्यार नफरत पाते हैं हम एक दूसरे से,
दिन रात एक दूसरे के लिए जीते मरते हैं,
पर वो हकीकत नहीं वो भी एक तमाशा है ।।
सब अपने किरदार को जीवंत करते हैं,
लिखी पंक्तियों तक ही आमने-सामने रहते हैं,
एक दिन आता है नाटक के पन्ने सिमट जाते हैं,
पर्दा गिरता है और रंगमंच छोड़ चले जाते हैं ।।
दर्शक कुछ रोते हैं कुछ बिलखते हैं कलाकारी पर,
पर वो भी हकीकत नहीं वो भी एक तमाशा है,
तमाशबीन है ये सपनों की दुनियाँ सारी,
यहाँ ना किसी को कुछ मिलता ना किसी का कुछ जाता है ।।
खाली हाथ आये खाली हाथ चल देते हैं,
कुछ को हँसता हुआ कुछ को रोता हुआ छोड़ देते हैं,
ये मकान ये दुकान ये शोहरतें सब यहीं रह जाती हैं,
जो जिस्म लाये उसे भी यहीं जलकर राख हो जाता हैं ।।
जीवन हकीकत नहीं बस एक तमाशा है….!!!
prAstya……(प्रशांत सोलंकी)