ये जिन्दगी का कैसा है खेल –आर के रस्तोगी
ये जिन्दगी का कैसा है खेल
कोई पास है तो कोई है फेल
कोई रोज माल पूए खाता
कोई भूखा ही सो जाता
कोई ए सी कमरे में सोता
कोई फुट पात पर सोता
ये जीवन के कैसे है खेल
कोई पास तो कोई है फेल
कोई रिक्शे में बैठ कर है चलता
कोई रिक्शे को खीच कर चलता
कोई चार चार गाडी रखता
कोई नंगे पाँव पैदल चलता
कोई हवाई जहाज से चलता
कोई उससे नीचे पाँव न धरता
कैसा है ये चलने का खेल
कोई पास तो कोई है फेल
कोई दाने दाने को तरसता
कोई अनाज गोदामों में भरता
अनाज गोदामों में सड़ जाता
गरीबो को ये नहीं मिल पाता
राशन के लिये लाईन लगी है
चारो तरफ भीड़ खडी है
कैसा है ये अनाज का खेल
कोई पास तो कोई है फेल
कही चारो तरफ है पानी पानी
कही मिलता न पीने को पानी
जब जनता करती है नादानी
तब प्रकृति करती है नादानी
कही चारो तरफ बाढ़ है आई
कही सूखे की नौबत है आई
कैसा है ये प्रकृति का खेल
कोई पास तो कोई है फेल
कोई मोदी के आगे लगा है
कोई मोदी के पीछे लगा है
कोई महागठबंधन है बनाता
कोई वोटरों को बेवकूफ बनाता
कोई कुनबे को राजनीति में लाता
कोई दुश्मन से हाथ मिलाता
कैसा है ये राजनीति का खेल
कोई पास है तो कोई है फेल
आर के रस्तोगी