ये ज़िंदगी
मैंने अपने घर की खिड़कियां और दरवाजे बंद कर दिए हैं,
लेकिन ज़हन की खिड़कियां और दिल के दरवाज़े को बंद करने में खुद को नाक़ाम पाता हूं ,
इन खिड़कियों से अजीब -अजीब से ख़यालात आकर मुझे तंग करते रहते हैं ,
रह-रह कर खौफ़ के साए दिल के दरवाज़े पर दस्त़क देते रहते हैं ,
बीते मंज़र को भुलाने की लाख कोश़िश करता हूं ,
दिल के दरवाजे हौस़ले जगा मज़बूत करता रहता हूं ,
न जाने क्यों अनजान सी कश्मकश़ में दिन गुज़रता है ,
ब़ेचैन करवटो में रात बीतती है ,
इस तरह ये बेज़ार ज़िंदगी घिसटती सी आगे बढ़ती है ,