ये ज़िंदगी इक कड़ा इम्तिहान है !
ये ज़िंदगी इक कड़ा इम्तिहान है !
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सही मायने में ये ज़िंदगी इक कड़ा इम्तिहान है !
इस पृथ्वी पर जन्म से मरण तक सब परेशान है !
चाहे बचपन की उमंग हों या जवानी की तरंग हो !
हिसाब मांगता रहता हर पल तभी कोई मुकाम है !!
आनेवाला हर पल अटपटे सवालों से भरा होता !
एक को हल करता तो दूसरा कोई उलझ जाता !
सुलझने, उलझने का सिलसिला सतत् चलता जाता !
इम्तिहान की तरह समय भी इसका सदा नियत होता !!
सवालों को सुलझाते जाते, जीवन की नैया बढ़ती जाती !
दूर – दूर तक कोई भी किनारा नैनों को नज़र नहीं आती !
पतवार के सहारे ही मझधार से यह नैया है निकल पाती !
कड़े इम्तिहान से गुजरकर ही मंज़िल कुछ करीब आ पाती !!
कल क्या होने वाला है, ये आज तक हमें ख़बर ना हो पाती !
ऐसी ही अनिश्चितताओं के दौर से ये ज़िंदगी गुजरती जाती !
भले पहले से ही इस इम्तिहान की सारी तैयारियाॅं की जाती !
फिर भी इस इम्तिहान के कुछ प्रश्न अनसुलझी ही रह जाती!!
पर ये जरूरी नहीं कि इसके सारे प्रश्न ही हल किये जाएं !
ये ऐसा इम्तिहान है जिसके कुछ प्रश्न खुद ही सुलझ जाते !
इंसान अगर ना सुलझा पाए तो वक्त ही इसे सुलझा जाते !
ज़िंदगी के ख़त्म होते ही ये सारे प्रश्न खुद-ब-खुद मिट जाते !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण”
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 21-07-2021.
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