ये जनाब नफरतों के शहर में,
ये जनाब नफरतों के शहर में,
मुहोबत की दुकान खोलना चाहते हैं।
और विदेशी धरती पर जाकर ,
अपने ही मुल्क के खिलाफ ,
नफरत की खेती करने लग जाते हैं ।
कैसे रंग बदलते गिरगट हैं यह ,
अपने ईमान से गिर चुके हैं।
ये जनाब नफरतों के शहर में,
मुहोबत की दुकान खोलना चाहते हैं।
और विदेशी धरती पर जाकर ,
अपने ही मुल्क के खिलाफ ,
नफरत की खेती करने लग जाते हैं ।
कैसे रंग बदलते गिरगट हैं यह ,
अपने ईमान से गिर चुके हैं।