ये चुनी हुई चुप्पियां
झूठ-मूठ का खेल-तमाशा क्यों
आख़िर इतना शोर-शराबा क्यों!
मज़हब के नाम पर चारों तरफ
रात-दिन यह धूम-धड़ाका क्यों!
हमारे लेखकों और पत्रकारों ने
क्या अपने आप को बेच दिया!
मौजूदा हुक़्मरानों के कांधे पर
क़ौमी ख़्वाबों का जनाजा क्यों!
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