ये चिड़िया
ये चिड़िया तुम कहाँ से आती
और कहाँ को जाती हो।
अच्छा है तेरा कोई
मजहब धर्म नही है।
मंदिर – मस्जिद और गुरूद्वारा
में तुम बटी नही हो।
अच्छा है आजाद ख्याल से
तुम उड़ती रहती हो।
मजहब धर्म के नाम पर
तुम दंगे तो नही करती हो।
जाति धर्म के नाम पर
तुम खून तो नही बहाती हो।
माना तेरे जीवन में
समस्याएँ बहुत बड़ी है।
कभी प्यास से तुम तड़पती हो
कभी भूखे सो जाती हो।
कभी गर्मी तुम्हें तपाती है
कभी तूफानों से लड़ती हो।
माना तेरा कोई घर
टिक नही पाता है,
पर सोने का पिंजरा भी
तुम को कहाँ भाता है।
स्वतंत्र हवा में जीना ही
तेरी खुशी का राज है।
जाति -धर्म, देश-विदेश का
न तुम में कोई विवाद हैं।
अच्छा है तेरे पंखो पर
किसी का पहरा नही है।
किसी देश के सैनिक ने
तुम्हें घेरा तो नही है।
कोई देश तुम से पहचान
तो नही है माँग रहा।
तेरे घर बनाने के लिए
आधार तो नही माँग रहा।
अच्छा हैं तुम पर किसी का
कोई पाबंद नही है।
किसी तरह का कोई रंग
तुम पर चढा नही है।
अपने मतलब के लिए चिड़िया
तुमने किसी को ठगा नही है।
अच्छा है तुम खुले विचारो
से चहकती रहती हो।
अच्छा है तुम किसी के
बहकावे में नही पड़ती हो।
लाख लोभ देते तुम्हें लोग
पर तुम इसमें नही फंसती हो।
अच्छा है तुमने अपने
आस्तित्व को बेचा नही है।
काश चिड़िया तुम से मैं
थोडा भी सीख पाती,
ओर तेरी तरह अपनी
काॅम को मै भी रख पाती।
-अनामिका