ये कैसे डर के साये में जी रही हैं बेटियां
-ये कैसे डर के साए में जी रही हैं बेटियां
यूँ तो सौभाग्य से आती हैं बेटियाँ,
कहते हैं किस्मत साथ लाती हैं बेटियाँ।
किस्मत बदकिस्मती में बदलने लगी है अब,
जमाना बड़ा खराब है सुनकर अकुला रही हैं बेटियाँ।
वासना की धार से तार-तार हो रहा है सम्मान,
सांझ होते ही घर लौट आती हैं बेटियाँ।
हर कदम पर खतरा है हर रिश्ते में छलावा है,
ये कैसे डर के साए में जी रही हैं बेटियाँ।
यूँ तो हिम्मत में कमी नहीं है लेकिन,
माँ बाप की चिंता को देख घबरा रही हैं बेटियाँ।
वर्षा श्रीवास्तव”अनीद्या”