Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jul 2017 · 4 min read

ये कैसी सजा

आज की रात भी वैसी ही थी। एक छत के नीचे दो अजनबी अपने अपने हिस्से के जख्मों को लेकर लेटे थे । राजीव तो शायद सो गए थे पर नेहा की आंखों में नींद नहीं थी। अब बहुत ही कम बात होती थी दोनो में। अकेले छत की ओर निहारती हुई नेहा याद कर रही थी वो दिन जब राजीव उसे देखने घर आए थे। पहली बार रिश्ते के लिए कोई उसे देखने आया था। पहली मुलाकात में कितने सहज और हंसमुख लगे थे राजीव। तब क्या अंदाजा भी था कि ये सहज और हंसमुख चेहरा सिर्फ एक छलावा है। छ: साल की शादीशुदा जिंदगी में शायद ही कभी राजीव फिर वैसे नजर आएं हों जैसे उस दिन थे। खैर। राजीव ने देखने के बाद हां कर दी थी और एक महीने के भीतर दोनों शादी के बंधन में बंध चुके थे। शादी के वक्त ही यह महसूस हो गया था कि ये व्यक्ति उस चेहरे से बहुत अलग है जो उस समय नजर आया था। पर अब पीछे लौटना मुमकिन न था। मां पिताजी बहुत खुश थे। बिना दहेज के अच्छा परिवार और इकलौता लडका मिल गया था।शादी के बाद भी कुछ समय साथ रहना हो न सका। दोनो की नौकरी अलग अलग जगह थी। ट्रासंफर में समय लगना स्वाभाविक था। इसी दौरान दोनों बाहर गए थे जब ये पता चला कि राजीव शराब पीते हैं। नेहा के पैरों तले जमीन खिसक चुकी थी। जिसने अपने घर में किसी को पान खाते भी न देखा उसके पति को सिगरेट शराब नानवेज सबका शौक था। कितने रिश्ते नही ठुकराए थे पापा ने ये जानकर कि लडका दुर्व्यसनी है। लेकिन किस्मत का खेल देखो जिस चीज से बचने की सबसे ज्यादा कोशिश रही आखिरी में उसी से टकराना पडा।शादी की शुरूआत ही हादसे से हो चुकी थी। अनजान शहर में अनजान जगह पर राजीव खुद का होश गंवाए निढाल पडे थे।जिस व्यक्ति ने सात फेरे लेते हुए पत्नी की देखभाल का वचन दिया था वो खुद अपने को नहीं संभाल सकता था।खैर दोनों की एक जगह पोस्टिंग हो गई ।पर बदला कुछ नही। राजीव का नशा प्रेम वैसा ही था। नेहा नौकरी और राजीव की आदतों के बीच हर दिन जीती थी,हर रात मरती थी। मम्मी पापा को बताने का सोचती थी तो पापा का विदा के समय का चेहरा और मम्मी की शादी के समय की खुशी याद आ जाती थी। अगर पापा जान जाते कि उनने जिस चीज के चलते इतने रिश्ते ठुकराए अंत में उसी चीज को यहां नही पकड पाए तो वो खुद को माफ नही कर पाते कभी। बस यही सोचकर मायके वालों के आगे सिर्फ हंसी ही छलकाती रही नेहा। और इधर ससुराल में भी अपना दर्द कहती तो किससे। कोई ननद या देवर होते तो शायद कुछ कह भी देती। दूसरे शहर में बैठे सास ससुर जो खुद ही अपनी बीमारियों और अकेलेपन से जूझ रहे थे उनसे कहती भी तो क्या । शुरूआत में कुछ साल बहुत लडाईयां हुईं। पर नशे का सिलसिला चलता रहा।अब धीरे धीरे नेहा की भी लडने की ताकत खतम हो चली थी। आधी राजीव के नशे से टूटी तो शादी के बाद भी लंबे समय तक संतान न होने से बची आधी भी टूट चुकी थी वो।राजीव को इससे भी कोई मतलब नही था कि इतने साल हो गए हैं कोई बच्चा नही है।लोग न जाने कितने डीक्टरों को दिखाते। कितने मंदिर मस्जिद मिन्नते लेकर जाते। पर राजीव को चिंता नही थी। क्योंकि राजीव के पास शराब थी और नेहा नितांत अकेली थी।हर वो दिन जब राजीव शराब पी रहे होते थे नेहा टूटकर रो रही होती थी। और हर वो दिन जब राजीव नही पी रहे होते थे नेहा खुश होती थी पर राजीव उखडे होते थे। धीरे धीरे राजीव ने नेहा को कुछ इस तरह समझा लिया था कि कभी कभार पी लेने में कोई बुराई नही है।और नेहा ने भी हार मानकर हथियार डाल दिए । फिर कभी कभार का पीना रोज का पीना बन गया। शराब की मात्रा भी दिन पर दिन बढती ही जा रही थी। लेकिन हां राजीव खुश थे। उनके तो मानो मन की मुराद पूरी हो चली थी। अब नेहा कोई बहस नही करती थी। वो जितने बजे तक पीते नेहा बैठकर इंतजार करती ।अंत में साथ में खाना खाकर ही सोती। और इसके बदले में हमेशा उखडे और अपने में खोए रहने वाले राजीव नेहा से कुछ पल बात कर लिया करते थे। नेहा के लिए इतना ही बहुत था।
लेकिन कोई इतनी घुटन में कितने दिन सांस लेता। कब तक बर्दाशत करता उस चीज को जो एक साथ दो जिंदगियां बर्बाद कर रही थी।
बहुत दिन बाद कुछ कहा था नेहा ने। आज छुट्टी का दिन है राजीव चलो डाक्टर के पास चलते हैं। राजीव ने जो जवाब दिया बहुत हैरान करने वाला था। राजीव ने टका सा जवाब दे दिया था, ड्राइवर को बुलाओ और चली जाओ। और थोडी ही देर में पैग बनाकर छुट्टी के दिन में ,दिन में पीने का मजा लेने लगे थे मिस्टर राजीव । अाज नेहा की सहनशक्ति टूट गई। और कह दिया अपनी सास को सब कुछ । अब मां बेटे जो भी आपस में तय करते ,नेहा सबके लिए तैयार थी।और आज पंद्रह दिन हो गए,राजीव ने शराब नही ली।राजीव को उसकी गलती की कोई सजा मिली न मिली हो,मगर नेहा सब सहकर,सच कहकर भी मुजरिम थी।राजीव के लिए अब नेहा सबसे बडी दुश्मन थी।एक ऐसी दुश्मन जो एक ही छत के नीचे उसके साथ रह रही थी। राजीव ने बात करना छोड दिया था नेहा से। और अंधेरी रात में छत की ओर देखते नेहा पूछ रही थी उस विधाता से जिसने उसकी किस्मत लिखी थी…..
मेरी क्या गलती मालिक………
ये कैसी सजा………
जो सहा वो गलत था,या जो कहा वो गलत??????
कालेज के दिनों में सबको अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने का भाषण देने वाली,स्वाभिमानी और गलत न सहने वाली वो लडकी आज कहां गायब हो गई? खुद से ही सवाल करती नेहा खुद में खुद को तलाश रही थी आज

Language: Hindi
1 Like · 353 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
एक गुनगुनी धूप
एक गुनगुनी धूप
Saraswati Bajpai
आजा माँ आजा
आजा माँ आजा
Basant Bhagawan Roy
श्री राम आ गए...!
श्री राम आ गए...!
भवेश
संस्कृत के आँचल की बेटी
संस्कृत के आँचल की बेटी
Er.Navaneet R Shandily
*राम-राम कहकर ही पूछा, सदा परस्पर हाल (मुक्तक)*
*राम-राम कहकर ही पूछा, सदा परस्पर हाल (मुक्तक)*
Ravi Prakash
शक्तिहीनों का कोई संगठन नहीं होता।
शक्तिहीनों का कोई संगठन नहीं होता।
Sanjay ' शून्य'
सारी गलतियां ख़ुद करके सीखोगे तो जिंदगी कम पड़ जाएगी, सफलता
सारी गलतियां ख़ुद करके सीखोगे तो जिंदगी कम पड़ जाएगी, सफलता
dks.lhp
कभी जो रास्ते तलाशते थे घर की तरफ आने को, अब वही राहें घर से
कभी जो रास्ते तलाशते थे घर की तरफ आने को, अब वही राहें घर से
Manisha Manjari
हिंदी मेरी राष्ट्र की भाषा जग में सबसे न्यारी है
हिंदी मेरी राष्ट्र की भाषा जग में सबसे न्यारी है
SHAMA PARVEEN
Friendship Day
Friendship Day
Tushar Jagawat
"सपने"
Dr. Kishan tandon kranti
In lamho ko kaid karlu apni chhoti mutthi me,
In lamho ko kaid karlu apni chhoti mutthi me,
Sakshi Tripathi
कह न पाई सारी रात सोचती रही
कह न पाई सारी रात सोचती रही
Ram Krishan Rastogi
डुगडुगी बजती रही ....
डुगडुगी बजती रही ....
sushil sarna
सोनू की चतुराई
सोनू की चतुराई
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*हमारा संविधान*
*हमारा संविधान*
Dushyant Kumar
श्री राम मंदिर
श्री राम मंदिर
Mukesh Kumar Sonkar
फ़र्क़ यह नहीं पड़ता
फ़र्क़ यह नहीं पड़ता
Anand Kumar
प्रणय 9
प्रणय 9
Ankita Patel
जमाने की नजरों में ही रंजीश-ए-हालात है,
जमाने की नजरों में ही रंजीश-ए-हालात है,
manjula chauhan
2846.*पूर्णिका*
2846.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ऐ जिन्दगी मैने तुम्हारा
ऐ जिन्दगी मैने तुम्हारा
पूर्वार्थ
मेरे हमदर्द मेरे हमराह, बने हो जब से तुम मेरे
मेरे हमदर्द मेरे हमराह, बने हो जब से तुम मेरे
gurudeenverma198
मैं कवि हूं
मैं कवि हूं
Shyam Sundar Subramanian
सद्विचार
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
यदि  हम विवेक , धैर्य और साहस का साथ न छोडे़ं तो किसी भी विप
यदि हम विवेक , धैर्य और साहस का साथ न छोडे़ं तो किसी भी विप
Raju Gajbhiye
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
जज्बात लिख रहा हूॅ॑
जज्बात लिख रहा हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
मेरी कहानी मेरी जुबानी
मेरी कहानी मेरी जुबानी
Vandna Thakur
सोचा होगा
सोचा होगा
संजय कुमार संजू
Loading...