ये कैसी जीत है
ये कैसी जीत है, छीन गई सबकुछ
हर तरफ मौत है, चीख पुकार है
उजड़े आशियाने मांग रहे है इंसाफ
ये तेरी जीत नहीं,मानवता की हार है।।
मना रहा जश्न किस बात का आज
सबका कुछ न कुछ खो गया है
थी हमको उम्मीद सिर्फ जिससे
वो खुदा भी आज मुंह मोड़ गया है।।
मंज़र है ये भयावह, हंसते खेलते शहर
आज राख के ढेर में बदल गए है
जमींदोज हो गए है स्कूल कॉलेज भी
उनमें पढ़ने वाले बच्चे जाने किधर गए है।।
लुट गया सबकुछ ताउम्र कमाया था जो
जल गया घर, बड़े अरमानों से बनाया था जो
फिर भी जश्न मना रहे हो तुम किस बात का
जान तो गवां बैठा वो भी तेरे साथ आया था जो।।
था नहीं वो ताकत का प्रदर्शन
चोट मानवता को पहुंचा रहा था
दिखा नहीं तुझको मलवे में वो
जो ज़ख्मी हालत में कराह रहा था।।
कर रहा शर्मसार मानवता को और भी
जो अपनी ताकत से मासूमों पर ज़ुल्म ढा रहा
भूख से बिलखते ज़ख्मी बच्चों पर भी
जाने तुमको क्यों तरस नहीं आ रहा।।
हमला हुआ फितूर का समझने की ताकत पर तेरी
सज़ा मिल रही मासूमों को, इस हिमाकत की तेरी
दिए है ज़ख्म ऐसे तुमने, नहीं भरेंगे ताउम्र जो
नहीं माफ करेगी दुनिया तुझे सुन ले ये बात मेरी।।