ये कैसा संघर्ष !!
ये कैसा संघर्ष !!
अर्श हमेशा की तरह अपने कार्यस्थल से लौट रहा था। अमूमन उसका सफ़र ट्रैन से ही हुआ करता था। जब ट्रैन प्लेटफार्म पर आ जाती थी तो वह भीड़ में अपनी केहुनी से जगह बना कर चढ़ जाता था। ज़रूरी नहीं हर दिन उसे बैठने के लिए कोई स्थान मिल जाता। एक दिन जब उसे जगह नहीं मिली तो वह ट्रैन के दरवाज़े के ठीक पीछे जा कर एक कोने में खड़ा हो गया। उसकी मंज़िल दो स्टेशन के बाद ही आती थी।
उस ट्रैन के अंदर के शोर ओ गुल के बीच वही पुरानी आवाज़ अर्श के कानों में आ कर फिर उस दिन तकड़ाने लगी…” पान ले लो!!… वाह रे वाह!! अल्लाह की शान! पेट के ऊपर पान दुकान!!!” ये आवाज़ मानो किसी फ़िल्मी डायलाग से कम न थी। बेचारा एक बूढ़ा इंसान एक रस्सी के सहारे अपने गले में लटकाये एक काठ के छोटे बक्से में पान बनाने का पूरा समान लिए फेरी कर रहा था। “पान ले लो!” … की आवाज़ से कोई उसके तरफ़ एक नज़र देखता न था। पर ठीक उसके दूसरे वाक्य की आवाज़…”वाह रे वाह!! अल्लाह की शान! पेट के ऊपर पान दुकान!!!”… से सब के सब मुसाफ़िर उसे देखने लगते और इस अद्भुत चलती फिरती दुकान को देख घबरा जाते। कई लोग उस पे तरस खा कर एक खिल्ली पान आर्डर कर देते। बेचारे इसी बहाने उस बूढ़े बाबा को कुछ पैसे की आमदनी हो जाती थी।
अर्श भी एक पान का आर्डर किया और उस से पैसा देते हुये पूछ बैठा…” बाबा !! इस तरह से क्यूँ बोलते हो कि …पेट के ऊपर पान दुकान?!!” ये सुन कर वह अर्श को एक टक देखने लगा। फिर उस बेचारे बुज़ुर्ग ने कहा…” बेटा !! उस ईश्वर का वचन है कि वह किसी भी ज़रिए से हमें रोज़ी रोटी मुहैय्या करवायेगा। बस हमें संघर्ष करते रहना है। किसे पता था जिस पापी पेट का सवाल है वही जवाब देगा। समझ आया?” अर्श परेशान हो कर कहा..” कुछ खास नहीं! ” फिर उस ने कहा…” बेटा!! ये पेट ख़ुद अपनी भूख मिटाने ख़ुद दुकान खोले बैठा है। जब शरीर का हर अंग संघर्ष करता है तो पेट क्यूँ न करे?” इतना बोल कर वो आगे निकल पड़ा।
फिर अर्श दरवाज़े से बाहर आसमान की तरफ़ देखा। मानो उसकी बेचैन निगाहें उस अल्लाह से शिकायत भरी नजरों से पूछ रही हो…” या अल्लाह! ये कैसी जद्दोजेहद! ये कैसा संघर्ष! ” संघर्ष चाहे जिस रूप में हो, संघर्ष से ही जीवन है। जिस दिन संघर्ष का अंत हुआ उस दिन जीवन का अंत हो जाएगा।
मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल