!!! ये कैसा मजहब !!!
जब हम खुद बहुत छोटे थे
तब अपने गुरुजनों से सुना
करते थे, कि मजहब नहीं
सीखाता, आपस में बैर रखना
पर आज जब हम खुद बड़े हुए
खुद देखा है अपनी आँखों से
कि सब वो बातें किताबी थी
आज तो सब और बैर ही बार है
देश के अंदर बैर पनप रहा
सीमा पर तो कब से था
बस दया धर्म की आड़ में
हर मजहब सर अपना उठा रहा
खुद को कोई नीचा नहीं होने देता
भाई चारा अब कहाँ पनप रहा
काट रहे हैं अपने ही अब तो
भाई चारा अब कहाँ पनप रहा ??
सब को इतना अहंकार है जग में
कोई किसी को नहीं देख रहा
एक दीवार के पीछे अब तो भाई
भाई का कतल भी तो कर रहा
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
कहते थे कभी थे भाई भाई
वक्त आज इतना बुरा है दोस्तों
नहीं मानता अब कोई भाई भाई
अजीत कुमार तलवार
मेरठ