ये कैसा आभास है
मेरे घर पर कोई
आता जाता नही
दहलीज़ पर कोई
शोर मचाता नही
ये कैसा आभास है
मेरे घर की घण्टी उदास है।।
बच्चें खेल नहीं पाते
ये उधम नही मचाते
दोस्तों से मिल नही पाते
ये कैसा आभास है
बचपन बदहवास है।।
बाजार की रौनक लूटी
मजदूरों की आशा टूटी
हर ख़बर लगती है झूटी
ये कैसा आभास है
हर तरफ सन्त्रास है ।।
स्कूल पर लगें है ताले
शादियों के पड़े है लाले
धंधे ईश्वर के हवाले
ये कैसा आभास है
उजड़ा सा मधुमास है ।।
जंग भी जीतेंगे
ये दिन भी बीतेंगे
नव सृजन लिखेंगे
ये कैसा आभास है
मन मे पूरा विश्वास है ।।