ये कहां डरते हैं
हम तो घबराते नहीं, तुम डर दिखाते क्यूं भला।
तुम जलाओगे उसे, जो अग्नि पथ पर हो चला।।
क्यों दिखाते स्वप्न उसको, रंजनों के व्यंजनों की।
भूख पर हो विजय पाई, बात करते उन जनों की।।
वस्त्र आभूषण की लालच, दे रहे हो तुम किसे।
चाहिए महज एक धोती और एक लंगोटी जिसे।।
तुम तो माया ही दिखाते, वो है माया से परे।
संत, सैनिक देश के, बस औरों के खातिर मरे।।