ये कहां उसके कमाने की उम्र थी
हँसने-खेलने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र थी,
ये कहां उसके कमाने की उम्र थी।
ले आई तन्हाई में क्यों उसे बे-वक़्त की बेचैनी,
उसकी तो महफिलों में जाने की उम्र थी।
उससे बिछड़ के भी उससे मिलता रहा था मैं,
उसकी तो इश्क लड़ाने की उम्र थी।
लाड प्यार से पलने का था उसे हक़,
अभी कहां उसकी किसी का बोझ उठाने की उम्र थी।
करनी थी अभी तो शरारतें तमाम,
दीवारों पर फूल पत्ते बनाने की उम्र थी।
इतने पहरे क्यों, इतनी रोक टोक किसलिए,
वैसे भी अभी तो ख्वाब सजाने की उम्र थी।