ये कहां आ गए हम …
हमारे देश की शिक्षा पद्धति प्राचीन काल में सर्वश्रेष्ठ थी। डिग्रियां नहीं बंटती थी किंतु गुरुओं द्वारा शिष्यों का हर क्षेत्र में विकास किया जाता था, उनके नैतिक मूल्यों का, सभ्यता और संस्कृति का, अनुशासन का, सहयोग एवं सद्भावना का ज्ञान दिया जाता था जो पूरे विश्व में अनूठा था।
अंग्रेजों ने जब हमारे देश में आकर हमारी शिक्षा पद्धति को देखा तो आश्चर्य चकित रह गये क्योंकि उनके देशों में ऐसा कुछ नहीं था। हमारे देश के नागरिकों के हृदय में माता पिता के प्रति आदर भाव था, बच्चों के प्रति बाल्सल्य , देश के प्रति देश प्रेम एवम इष्ट मित्रों तथा रिश्तेदारों के प्रति अगाध मित्रता, सहानुभूति एवं सहयोग की भावना थी। जिसके कारण हम सभी एक दूसरे से इन सदगुणों के बंधन में बंधे थे। इसलिए अंग्रेजों ने सबसे पहले शिक्षा पद्धति पर
प्रहार किया क्योंकि वे जानते थे कि किसी भी राष्ट्र की रीढ़ शिक्षा होती है। लॉर्ड मैकाले ने गुरुकुलों पर प्रतिबंध लगाया। भारतीय भाषा संस्कृत एवं देवनागरी पर अंग्रेजी भाषा हावी होने लगी। वर्तमान में भले ही अंग्रेज हमारे देश को छोड़कर चले गये परंतु उन्होने जो बीज बोया था वह प्रस्फुटित होकर एक विशाल वृक्ष बन गया जिसे काटना अब असंभव है। लॉर्ड मैकाले की आत्मा को कितनी शांति मिल रही होगी। वर्तमान में नौकरियों में हिंदीभाषी अभ्यर्थी कितना भी गुणी क्यों न हो उसे पिछड़ा समझा जाता है। शनैः शनैः शिक्षा डिग्रियों में सिमटकर रह गया। यह छात्रों का मशीनीकरण करती है, सभ्यता संस्कृति से कोसों दूर। इसलिए नमस्ते प्रणाम परिवर्तित होकर
हैलो हाय हो गया | चरण स्पर्श अब घुटना स्पर्श हो गया। उन्हें नहीं पता कि चरण स्पर्श क्यों किया जाता है और न ही जानने की आवश्यकता है। छात्र रात दिन एक करते हैं तब उन्हें बड़ी बड़ी डिग्री मिलती है और इसके सहारे मोटी मोटी तनख्वाह | पति पत्नी दोनों मोटी तनख्वाह के लिये पुनः अधिकतर समय अपने कार्य स्थल पर । परिणामस्वरूप अपने पूरे जीवन काल में बड़ी मुश्किल से एक संतान की प्राप्त होती है, जिसके कारण चाचा, ताऊ, बुवा , फूफा इन सब रिश्तों से वह संतान अनभिज्ञ रहता है। आने वाले दिनों में मम्मा, पापा के अलावा कुछ भी जानकारी उन्हें न होगी।
वह दिन दूर हो गया जब एक मकान में तीन तीन पीढ़ियों का जीवन यापन होता था | वर्तमान में बामुश्किल एक पीढी , इसलिए अपार्टमेंट या फ्लैट प्रथा का उदय हुआ जो दिनोंदिन फल फूल रहा है। और फल फूल रहा है वृद्धाश्रम | इनमें गुजर बसर करने वाले अधिकतर ऐसे लोग हैं जिन्होने अपनी संतानों को उनके पैरों पर खड़ा करने के लिये अपना समस्त जीवन न्योछावर कर दिया। कभी ये लोग भी गर्व से कहते थे कि उनका लड़का 60 लाख, 70 लाख सालाना कमाता है । आज वह सब नदारद। आश्चर्य तो यह है कि इस अंधी दौड़ में अब भी लोग शामिल हैं ।
घर में मां के हाथों का भोजन विरले ही अब नसीब होता है क्योंकि उन्हें भी ऑफिस जाने की जल्दी रहती है। माँ के हाथों से बना भोजन न सिर्फ उदर को तृप्त करता है , बल्कि आत्मा भी तृप्त होती है चूंकि
उस भोजन के पकने में मां की ममता, स्नेह, दुलार और प्यार का सम्मिश्रण होता है जो अन्यत्र दुर्लभ है। वर्तमान पीढ़ी ने बर्गर, पिज्जा, चाउमिन, मोमोस को अपना भोजन बना लिया है तथा Swiggy और Zomato को अन्नदाता।
विवाह के संदर्भ में कहावत है-चट मंगनी,पट ब्याह | अब चट ब्याह, पट तलाक भी हो रहे हैं। अदालतों का मानना है पिछले दस वर्षो में तलाक में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। कारण सर्वविदित है। पहले माँ बाप की अनुभवी आंखें अपने बेटों बेटी के लिये रिश्ता तलाशते थे। उसपर रिश्तेदारों का सामाजिक दबाव | अब तो लिव इन रिलेशनशिप
का दौर आ गया है। माता पिता विवश हैं, क्या करें।
इन सब कुरीतियों को आगे बढ़ाने में मीडिया ने भी अहम भूमिका निभाई है। ऐसे ऐसे सीरियल मनोरंजन के नाम पर परोसे जा रहे हैं जो इन कुरीतियों को बढ़ावा देते है।
वह सनातन संस्कृति जो कभी विश्वगुरू था आज क्रमशः सिमटता, सिकुड़ता जा रहा है | जिस गति से यह सिमट रहा है, विलुप्त शीघ्र ही तय है और वर्तमान पीढ़ी इसका दंश झेलेगी।
भागीरथ प्रसाद
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