ये कहाँ आ गये हम
कहते हैं आज़ादी के बीते पिछतर साल,
२१वीं सदी में बैठ के भी करते हम कमाल,
अंधेरी कोठरी बंद हैं गुदड़ी के लाल,
क़त्लों के सरदार मंत्री बने मुरारी लाल,
ये कहाँ आ गये हम।
दूसरी घटना सुन के बोलोगे बदली कैसे रीत,
संतो के चौपाल में बजी कत्ले-आम की गीत,
नियम क़ानून सब हाथ बांधे बैठे इनके नज़दीक,
राम प्रीति सब मानन वाले बने रावण के हीत,
ये कहाँ आ गये हम।
कुछ उदंड घरानों के बच्चे करते फ़रमाइश नाना,
ये दलित है इसके हाथ से ना खाएँगे खाना,
इनके ही पूर्वज बाँट समाज को बने अंधो में काना,
ये २०२१ में गाते १८०० वाले गाना,
ये कहाँ आ गये हम।
शिक्षा जहां मिलनी थी मुफ़्त मिलती हथियारों की सीख,
नफ़रत बिकती खुले बाज़ार मिलती भाईचारे की भीख,
जहां बेटियाँ होती स्वतंत्र वहाँ सुनाई दे जाती चीख,
बुद्ध, गांधी के मार्ग को छोड़ जाने पकड़ी कौन सी लीख,
ये कहाँ आ गये हम।।।