” ये कसूर मेरा है !”
परिवार जैसा और परिवार होन में फर्क जरा है ,
हालात बदलतें ही ,
हाथ छोड़ देना शायद तेरी कला है ।
तु बुरा ना मान ,
ये कसूर मेरा है !
अपने झूठे वायदो से तुने मुझे ठगा है ,
सब जानकर भी ,
तुझे मौका देना मेरी खता है ।
किसी की मासूमियत का कत्ल करना ,
वाह ! तेरी क्या अदा है ।
तु बुरा ना मान ,
ये कसूर मेरा है !
अपने स्वार्थ के लिए ,
मतलबीपन दिखाना तेरे लिए मजा है ।
हर बार अपने क्षणिक आनंद के लिए छला है ,
तुने ही तो स्वार्थि होने का प्रमाण दिया है ।
तु बुरा ना मान ,
ये कसूर मेरा है !
ज्योति
नई दिल्ली