ये करुणा भी कितनी प्रणय है….!
ये करुणा भी कितनी प्रणय है
कुछ सकल सुख है इसमें श्रृँगार का
कुछ विकल आँसुओं की ये लय है
ये करुणा भी कितनी प्रणय है
अंदरूनी चमक लाख सी जल गई
जो धवल था बदन चाँदनी छल गई
आग मन की जो युँ ही दमकती रही
स्वेद–कण को भी तन में शरण मिल गई
ये तृष्णा भी कितनी उभय है
कुछ तरल भाव है इसमें उद्गार का
कुछ गरल सी धाराओं की मय है
ये करुणा भी कितनी प्रणय है
तोड़कर जो चला अपने बंधन अशेष
बढ़ चला रही जैसे भ्रमण पंथ देश
सूर्य ज्योंही ढ़ला कोई दीपक जला
पथिक भी रुक गया जो चला था चला
राह भी ये कितनी अजय है
कुछ अचल भाव है इसमें विस्तार का
कुछ अनल रास्तों की ये अय है
ये करुणा भी कितनी प्रणय है
प्रेम ने आके अनुराग को भर लिया
रात विरहन जो बैठी है बनके पिया
सीप के स्वप्न ने मोतियों से कहा
माला बनती नहीं धागा जो न गुहा
ये रजनी भी कितनी अक्षय है
कुछ मुरल थाप है इसमें मनुहार का
कुछ कुरल गेसुओं की ये नय है
ये करुणा भी कितनी प्रणय है
––कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍🏻
★स्वरचित रचना
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