ये इश्क क्या होता है ?
दिन भर बेगार खटने के बाद
जब शाम को घर की देहरी पे पैर पड़े
और इंतजार में बैठी मेहरी
उत्सुक निगाहों से चेहरे की थकान नहीं
अंगोछे की गांठ देखे
जिस पे मजूरी के नाम पे
फेंका गया दो मुठ्ठी अनाज हो
और मेहरी कभी उस दो मुठ्ठी अनाज को देखे
कभी दिन भर के भूखे अपने बच्चों को
तब उसका मैला कुचैला हाथ
अपने हाथों में ले,
ठोढ़ी को चूमना और कहना
“आज इत्ते से काम चला लो, कल ज्यादा लाऊंगा”
और महरी हंसते हुए कहे
“कोई नहीं…” वही इश्क है
जब भादो के महीने में
काले काले बादल फूस के छत पे
टूट के बरसे
और बूंदे छत के अस्तित्व पे सवाल खड़ा कर दे
बिस्तर,आला, मुंह बाए टीन की पेटी और चूल्हे का पेट
जब पानी पानी हो जाय
घर में कहीं कोई सूखा कोना न दिखे
महरी अपने फटे आंचल से
बच्चों के सर पे साया करे
तब उसके महीनों पहले धोए बाल पे
अपनी तलहथी रखना
और कहना “आते साल नया छपड डलवा लेंगे”
उसी छन में तो गिरा होता है कहीं इश्क
ये इश्क क्या होता है???
~ सिद्धार्थ