ये इंसान!
ये इंसान,
आज फक्त,
है परेशान,
जाने क्यों,
रहता बेचैन,
और करे,
दूसरे को भी बेचैन!
ये इंसान,
जिसके पास,
दिल दिमाग है,
नयी नयी इबारतें,
रचने का हुनर है,
जिसके बस में,
और भी बहुत कुछ है,
पर जो नही है,
वह है संतोष!
रहता है अक्सर,
असंतुष्ट,
अनमना,
चिढचिडा,
बेचैन, विरान,
हैरान परेशान,
इस सब के बावजूद,
कि उसके पास,
पाने को बहुत कुछ है,
और खोने को है क्या?
क्या लेकर आया था,
और क्या लेकर जाना है,
सब कुछ यहीं पर अर्जित किया,
और यहीं पर छोड़ जाना है,
बस एक मृगतृष्णा के,
जुटा रहा है सामान,
भोगने को भी वक्त नहीं,
लगा रहा अंबार,
भौतिक सुख साधनों का,
दूसरों के हक हुकूक को,
दर किनारे कर,
और इसीलिए,
बनी रहती तकरार,
अपने अपनों के बीच,
अमीर गरीब के बीच,
ऊंच नीच के बीच,
समेटे जा रहा,
इस उम्मीद में,
शायद कल,
कुछ मिले ना मिले,
तो आज ही,
हासिल करले,
यह जाने सोचे बगैर,
कब तक चलेगा,
यह संजोया हुआ,
और माना की,
चल भी गया,
ता उम्र,
तो जब आसपास,
जीने वाले,
ही ना रहे,
तो अकेले में,
सिर्फ अपने,
और अपनों के सहारे,
इस विकट जीवन को,
कैसे कर लेगा पूरा,
जब ना होगा मददगार कोई,
ऐसा तो है नहीं,
सब दिन एक समान हों,
कभी किसी संकट से सामना हो गया तो,
जिसकी आशंका में,
इस अंबार को,
समेटा था,
वही काम ना आ पाये,
तो इस जुटाए हुए अंबार का,
क्या लाभ,
क्या यह सोचने का भी वक्त,
निकाला है कभी,
या सिर्फ अपना ही बर्चस्व,
कायम करने की चाहत में,
दूसरों को इतना सताया,
बना चुका है पराया,
वो कभी बुरा वक्त आने पर,
खडा नही हो पा रहा है साथ में!
ये इंसान,
फक्त क्यों है परेशान,
जो ढूंढता भी नही ,
इसका निदान?