ये इंतजार
दुनिया के अपने रिवाज ओ रवायतें है प्यार करने के,
बस नफ़रत पर कोई पाबन्दी नहीं।
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बेहिसाब बिजलियों की लपटे अपने दामन में समेटे है,
उसे छुआ भी नही और बेहोश हो गए।
कितने मयखाने उसके लबों पर मुस्कुराते रहते है,
बिना चूमे ही हम मदहोश हो गए।
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ये इन्तजार, ये रात कभी रुखसत नहीं होंगे इस ज़िन्दगी से,
ये मुकद्दर की बातें है ख़ुदा जाने क्या होगा।
कभी सुबह की चटख धुप भी खिलेगी,
या जाने सिर्फ़ धुँआ धुँआ होगा।
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हर शख़्स की आँखों में मुर्दापन छाया है,
पता नहीं ‘दवे’ ये शहर है या शमशान।