ये आदमी सड़क पर…
जोड़ा घटाया और खड़ा कर दिया
फिर से ये झूठ का किला ढह गया
क्या होना था और ये क्या हो गया
ये आदमी सड़क पर क्यों मर गया
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हवा मस्तियों में तो इस कदर चूर है
ये दीपक है बुझा का बुझा रह गया
कारवां कालिमा का गुजरता जिधर
ये उजाला उधर से भागता रह गया
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कोई आगे बढ़ा व कोई पीछे रह गया
ये आदमी तो ठगा का ठगा रह गया
है शक्ति का समर्थन सभी झुक गए
वो अकेला खड़ा का खड़ा रह गया
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राहु-केतु का करिश्मा यूं चलता रहा
अमृत पहले पिया आज भी पी गया
ये आदमी भोला-भाला शिव ही रहा
इसके जिम्में हमेशा से बिष रह गया
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सारा बंटा इस तरह दो धड़ा हो गया
वो तो बड़ा है और भी बड़ा हो गया
ये आसमां और वो तो ज़मी पा गया
ये बेचारा है छला का छला रह गया
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ये जिस गली में पड़ा है पड़ा रह गया
सूर्य की रोशनी से अनछुआ रह गया
आज रातें भी अमावस के पहरे में हैं
चांद अब अंधेरों का रहनुमा रह गया
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ये कभी जिंदगी की रिदम पा न सका
जब-जब गीत गाया तो बेसुरा हो गया
सुंदर सपना बुना एक अधूरा रह गया
अंत तक तो ये धरा का धरा रह गया
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है चारों तरफ से उसे विवशता ने घेरा
सुर उसका तो दबा का दबा रह गया
मंज़िलें कुछ कदमों तक सीमित रही
ये जहां से चला हैं बस वहीं रह गया
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नहीं जान पाया ये तूफ़ानों की ताकत
सीधा इतना है तना का तना रह गया
है टूटकर कई खंडों में विघटित हुआ
न झुकने की सज़ाएं भोगता रह गया
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– रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक ‘