अपना ये गणतंत्र
रचें सियासी बेशरम ,जब-जब भी षड्यंत्र !
आँखे मूँद खड़ा विवश, दिखा मुझे गणतंत्र !!
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कहलाता गणतंत्र का, दिवस राष्ट्रीय पर्व !
होता है इस बात का , …हमें हमेशा गर्व !!
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हुआ पतन गणतंत्र का, बिगड़ा सकल हिसाब !
अपराधी नेता हुए, ……..सिस्टम हुआ खराब !!
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राजनीतिक के लाभ का, ..जिसने पाया भोग !
उसे सियासी जाति का, लगा समझ लो रोग !!
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यूँ करते हैं आजकल, राजनीति में लोग !
लोकतंत्र की आड में, सत्ता का उपभोग !!
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भूखे को रोटी मिले,मिले हाथ को काम !
समझेगी गणतंत्र का, अर्थ तभी आवाम !!
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मात्र ख़िलौना रह गया अपना अब गणतंत्र !
भ्रष्टाचारी देश का , …….चला रहे जब तंत्र ! !
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लोकतंत्र के तंत्र को , ……करते हैं बरबाद !
स्वार्थ-पथी गणतंत्र का, बदल रहे अनुवाद !!
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रूप -रंग गणतंत्र का ,बदल गया है आज!
करते अब इस देश में , भ्रष्ट शान से राज !!
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अपनो ने ही कर दिया,अपनो को परतंत्र !
आँखे अपनी मूँद कर, देख रहा गणतंत्र ! !
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जिसको देखो कर रहा, .वादों की बौछार !
और घोषणा-पत्र भी , बना एक हथियार !!
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दूषित है अब देश का ,बुरी तरह गणतंत्र !
राजनीति भी हो गई,.बस सत्ता का यंत्र !!
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राजनीति ने तंत्र के, दिए काट जब पंख !
कैसे तब गणतन्त्र का,बजता खुलकर शंख !!
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एक दूसरे पर कभी , होना नहीं सवार !
लोकतंत्र का अर्थ है , बनिये जिम्मेदार !!
रमेश शर्मा.