ये अनोखे रिश्ते
ये हिचकियाँ भी ना जाने किसकी यादो की दस्तक आज सुबह सुबह ही दे रही है. माँ कब से कह रही है कि, पानी पिले ।।मगर मैं हु कि कब से चाय का कप लेकर बालकनी मे खड़ी हुई , इस शांत हवा के साथ गुनगुना रही हु।। मैं खुद मे व्यस्त थी ही, कि माँ जोर से बोलती हुए बालकनी तक आ गयी । और कहने लगी, ऋषिका मैं कब से आवाज लगा रही हु l तु है कि मेरी एक आवाज का एक जवाब तक नही दिया ।। आखिर तुझे हो क्या गया है ।
न किसी से ज्यादा बोलती है, न साथ मे खाना खाती है, ना घर से बाहर, न कही घूमने दोस्तो के पास जाती है ।। न तेरे चहरे पर वो मुस्कुराहट है, तु कुछ बोलेंगी l या ऐसे ही चुप चाप खड़ी रहेंगी । अब जल्दी से तैयार हो जाl तेरे पापा के दोस्त महेश अंकल के यहां खाना खाने जाना है । और जल्दी से नीचे आजा lतेरे पापा तुझे बुला रहे है । मैं कुछ कहती इतने माँ नीचे चली गयी..आज बिल्कुल भी कही जाने का मन नही था महेश अंकल के घर जाने का सुनते ही मुझे थोड़ा गुस्सा आने लग गया पिछली रात ही कॉफी शॉप पर वैभव से झगड़ा जो हो गया था तो क्यु जाउ उसके घर आखिर उसने ही तो कहा था ना कि मुझसे बात मत करना ।। तो फिर क्यों जाउ मैं lशायद ये खाने पर बुलाने का प्रोग्राम भी वैभव का ही होगा ।वैभव पापा के ऑफिस दोस्त का ही लड़का थाl एक ऑफिस पार्टी मे मिलवाया था पापा ने हम सब कोl बस तब से हम एक दूसरे से मिलने लग गये कभी कॉफी शॉप कभी, टॉकीज , कभी चिल्ड्रन पार्क, बस धीरे धीरे हम.अच्छे दोस्त बन गए । मैं कुछ ओर सोच ही रही थी कि पापा की आवाज सुनाई दी l मैं जल्दी से आई, पापा कहकर नीचे चली गई पापा बोले ऋषिका तुम अभी तक तैयार नही हुई ।हम लेट हो रहे है ।पापा कुछ ओर कहते इतने मैंने पापा से मना कर दिया पापा मुझे कही नही जाना आप लोग चले जाईये ।इतना कहकर मैं अपने कमरे मे चली गयी । अपने मोबाइल को देखा तो 2 मिस कॉल और 5 सन्देश वैभव के थे । जिनमे लिखा था सॉरी फॉर लास्ट नाईट . बोलना तो मैं भी चाह रही थी पर कोई मुझे हर बात पर ब्लेम करे मुझे अच्छा नही लगता । मैं भी अपनी ज़िद पर अडिग रहीl एसएमएस और कॉल्स के कोई जवाब नही दिये । मम्मी पापा को जाये अब तक पूरे 15 मिनट हो चुके थे । मैं किचन की ओर जाने ही वाली थी कि न्यू नंबर से कॉल आया मैंने जैसे ही फोन उठाया और हलो के साथ ही सामने से वैभव की आवाज आई… सुनो, मैं 10 मिनट मे तुम्हारे घर पहुच रहा हु, तैयार हो जाना । इतना कहकर उसने फोन काट दिया । खुद की सोच मे ही उलझ गयी कि अब क्या करु । यही सोचते मैं नहाने चली गयी । इतने मे दरवाजे पर दस्तक हुई l मैंने जल्दी तैयार हो कर दरवाजा खोला कि सामने वैभव एक फूलो का गुलदस्ता ओर उसमे एक सॉरी का कार्ड और हाथ मे बहुत सारे गुब्बारे लेकर सामने खड़ा था उसने मुझे फूल दिया ओर जोर से गले लगा लिया और कान मे सॉरी कहकर कान पकड़कर खड़ा हो गया उसके इतना कुछ कर लेने के बाद मैं खुद को रोक नही पायी ।मैं हल्की सी मुस्कुरा दी ।उसने मुझे अपने साथ चलने को कहा ।मैं तैयार हो कर उसकी कार मे बैठ गई । 5 मिनट बाद हम दोनो उसके घर पर थे । वहा जाकर देखा तो सब लोग गेट पर ही खड़े थे । मैं अपने आप को समेटी हुई आँखे नीचे झुकाकर अंकल ऑन्टी के पैर छुए , इतने मे महेश अंकल मेरे पापा से बोले , शर्मा जी हमे ऋषिका पसंद है । आगे बात करे । बस इतनी सी थी ये कहानी ,,,