ये अनजाना सा डर कैसा ??
ये अनजाना सा डर कैसा ??
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दिन रात करते हैं हम कर्म अपना !
औरों की सेवा है जब धर्म अपना !
ना कभी किसी का कुछ बिगाड़ते ,
तो ये अनजाना सा डर कैसा….??
सन्मार्ग पर ही हर पल हैं चलते जाते ,
हरेक कदम फूंक-फूंक कर ही रखते !
सच्चाई की राह पर ही अडिग रहते….
तो ये अनजाना सा डर कैसा…..??
हर किसी की अपेक्षाओं पे खड़े उतरते ,
ना किसी को कभी भी दुखी देख सकते !
औरों की खुशी में ही खुशी अपनी ढूंढ़ते ,
तो फिर ये अनजाना सा डर कैसा…..??
औरों के सफ़र का सच्चा साथी बन जाते ,
कदम में सबके कदम अपने भी मिलाते !
मंज़िल का सफ़र सबकी आसान बनाते ,
तो फिर ये अनजाना सा डर कैसा….??
डर तब होता जब कर्म से वंचित रह जाते ,
औरों की राह में सदा रोड़े खड़े कर जाते !
पर परोपकार के मार्ग पर जब चलते जाते ,
तो फिर ये अनजाना सा डर कैसा……??
डर तो मेरे नजरिए से उस वहम का नाम है ,
जो प्रायः खुद की ही कमी से हैं उत्पन्न होते !
हाॅं कभी-कभी अन्य तत्व भी डर पैदा करते ,
पर अक्सर तो हम वहम के ही शिकार होते !!
तो हमारी पहली कोशिश सदा ये होनी चाहिए ,
कि हम अपने अंदर ये वहम ना पैदा होने दें !
हम सदैव अपने कर्त्तव्य बखूबी निभाते रहें….
और आत्मविश्वास कभी कम नहीं पड़ने दें !!
और जब इतने सारे गुणों से लैस हम होंगे….
तो हमें सकारात्मकता की ओर वे ले जाएंगे !
हमारे अंदर कोई वहम पैदा ही ना होने देंगे !
और हम बुलंद हौसलों के साथ आगे बढ़ेंगे !
जब खुद में इतने सद्गुणों को समाहित करेंगे ,
तो फिर ये अनजाना सा कोई डर कैसा…..??
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 09 दिसंबर, 2021.
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