यूनिवर्सिटी के गलियारे
वो यूनिवर्सिटी के गलियारे,वो उर्दू विभाग।
वो युवा छात्रों के, इश्क की दहकती आग ।
वो बंक करना क्लासें, कंन्टीन में चाय पीना
चिंता न कोई घर की , बिना टेंशन था जीना।
वो लड़कियों को होस्टल में ,घुसना बहाने से
दीवार फांद भागना फिर वार्डन के आने से।
वो बैक बैंचर बन के ,सारा साल करना मस्ती
फाइनल सेमेस्टर में , बदल डाली फिर हस्ती।
वो यूनिवर्सिटी के गलियारों में ढूंढे शैतानिया।
अकेले बैठ कंन्टीन में याद करते नादानियां
सुरिंदर कौर