यूं ही रंग दिखाते रहिए।
यूं ही रंग दिखाते रहिए।
ठोकर खायी है बहुधा पर भूल गया और कदम बढ़ाए,
याद अगर सब कुछ रखे तो कैसे कोई आगे जाए,
मुझे याद रह जाए सब कुछ पग में शूल चुभाते रहिए,
यूं ही रंग दिखाते रहिए।
ये अक्सर होता रहता है खुशियां हमको बहकाती हैं,
कोमल रंगो की खुशबू की दुनियां में वो ले जाती हैं,
भ्रम हावी न होने पाए अंधड़ बनकर आते रहिए,
यूं ही रंग दिखाते रहिए।
बहुत देर तक कुछ न हो तो भ्रम इक मन पर छा जाता है,
सरल, सुगढ़ , सुंदर सब जग में मन यह मन को बतलाता है,
मन इस माया में न उलझे असली चित्र दिखाते रहिए,
यूं ही रंग दिखाते रहिए।
कुमार कलहंस।