यूँ ही
टूट गए घर जाने कितने आपस के ही क्लेश से
अस्सी साल हुए न समझे भिड़े पुत्र अखिलेश से
बोल रहा इतिहास सियासत होती बड़ी कमीनी है
पहली बार पिता ने अपने पुत्र से सत्ता छीनी है
खूब लड़ा था खुलकर जिसने दुश्मन को ललकारा था
अखिलेश तुम्हारी राजनीति के नभ का अटल सितारा था
राज बताओ किसकी खातिर तुमने हिस्सा बाँट दिया
बैठे थे जिस डाल पे तुमने आज उसी को काट दिया
सत्ता की खातिर यूँ होते विधवा विलाप नहीं देखा
अपना घर जो खुद ही जला दे ऐसा बाप नहीं देखा
मचल रही थी लब पर ऐसी कौन सी प्यास अधूरी थी
कैसा कदम उठाया तुमने ऐसी क्या मजबूरी थी
पाँच साल तक बेवकूफ जनता को कहो बनाया क्यों
लायक पुत्र नहीं था ग़र तो फिर निज़ाम बनवाया क्यों
टीस दबी है दिल मे लेकिन खूब हँसे हो नेता जी
आज बता दो जनता को तुम कहाँ फँसे हो नेता जी
सत्ता की खातिर यूँ होते विधवा विलाप नहीं देखा
अपना घर जो खुद ही जला दे ऐसा बाप नहीं देखा
काँटा जिसके हाथ चुभा उसको गुलाब देना होगा
बात आ गयी घर से बाहर अब जवाब देना होगा
डूब जाएगी सपा सल्तनत कुछ भी शेष नहीं होगा
साख गँवा बैठोगे सारी ग़र अखिलेश नहीं होगा