यूँ ही मैली दिल की दौलत हो रही है
आज रुस्वा घर की अस्मत हो रही है
घर के बाहर ये सियासत हो रही है
सुस्त है रफ़्तार भी इन्साफ़ की अब
नींद में जैसे अदालत हो रही है
जेल में निर्दोष भेजे जा रहे क्यों
क़ातिलों की क्यूँ ज़मानत हो रही है
सच खड़ा है आज देखो कटघरे में
झूट की हरसूं वकालत हो रही है
आज फिर अपनी ज़ुबाँ से सच ही निकला
कह रहे सब क्या हिमाक़त हो रही है
प्यार की दौलत पे क़ाबिज़ नफ़रतें हैं
यूँ ही मैली दिल की दौलत हो रही है
वक़्ते-मुश्क़िल काम आता है न कोई
दोस्तों की ये इनायत हो रही है
जो मिला उसने परोसी ग़म की थाली
यूँ ग़मों की ख़ूब बरकत हो रही है
दिल मेरा ‘आनन्द’ से नाराज़ थोड़ा
दिल को शायद कुछ शिकायत हो रही है
– डॉ आनन्द किशोर