यूँ ही कभी कभी
१.
दिले-ऐ-नादान को सुकून की तलाश है
जो बंद है तेरे चन्द अल्फाजों के भीतर |
२.
दीदार-ऐ-यार को तरस रही थी आँखें
तेरी तस्वीर देख के कुछ सुकून आया |
३.
हर सांस के साथ एक आह सी निकलती है
तेरे चेहरे पे जब मायूसी का आलम होता है |
४.
फ़रिश्ते मंडरा रहे थे मेरी जाँ ले जाने को
आब-ऐ-हयात बनकर तेरी दुआ आ गयी |
५.
तेरी एक अदद मुस्कराहट का तलबगार है ये दिल
कानों को तेरी बढ़ी हुई धडकनों ने बेचैन किया है |
६.
तुझसे दूरी का सोचना भी दिल को तकलीफ देता है
तुम हो की बात बात पर दूर जाने की बात करते हो |
७.
तुमने जो जज़्बात छुपाये हैं मुखौटे के पीछे
बता दो तुम्हारी इस बेरुखी की वजह क्या है |
८.
तुझे क्या मालूम कितना कितना डरते हैं तुझे खोने से
हर सांस पे जान निकलती है तुझे खोने के एहसास से |
९.
तुम जा तो रहे हो मुझसे मुंह फेरकर
क्या हो अगर हम फिर दिखे ही नहीं |
१०.
हालातों के हाथों मजबूर खिलौना हूँ मैं
वर्ना छीन लिया होता तुझे जहां वालों से |
११.
तुझे खबर है अपनी जान का दुश्मन नहीं हो सकता मैं
मेरी जान अमानत है तेरी जो मेरे पास महफूज रखी है |
१२.
मुहूर्त निकला है घर जा के बयाँ करेंगे दिल के जज़्बात
क्या हो ग़र खुदा ने मुझे मोहलत ही न दी तेरे जाने तक |
१३.
मेरे खुदा मुझे मोहलत बख्श देना चन्द लम्हातों की
मैं निगहबान हूँ मेरी जान अमानत है किसी और की |
“सन्दीप कुमार”
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