यूँ ही आ चाहे जरूरत में आ
कहीं किसी भी मुहूरत में आ
मेरे ख्यालों से हकीकत में आ
तिरा दीदार सुकूँ देता है
युँ ही आ चाहे जरूरत में आ
खुशी के वक्त़ न आने वाले
निकल के आँख से मैय्यत में आ
हटा ये नाज अमीरों वाला
उठा के रोटियाँ गुरबत में आ
सही गलत का फैसला होगा
खिलाफ बोल बगावत में आ
शरीफ हूँ मै मुझसे मिलने को
मुखौटा डाल शराफत में आ
खुला दरवाजा हैं बिछी पलकें
मिरे महबूब नजाक़त में आ