यूँ मुहब्बत में मिली रुस्वाइयाँ हैं
यूँ मुहब्बत में मिली रुस्वाइयाँ हैं
शामे-ग़म है हर तरफ़ बरबादियाँ हैं
ज़िन्दगी में रंजोग़म इतना मिला है
बेसुकूँ करने लगी पुरवाइयाँ हैं
गीत या संगीत सब कुछ बेमज़ा है
मातमी धुन को लिये शहनाइयाँ हैं
देख लो सर पर मेरे है आज सूरज
साथ में दिखती नहीं परछाइयाँ हैं
राब्ता मायूसियों से हो गया है
इस क़दर बेरौनके रानाइयाँ हैं
उथले सागर में नहीं मिलता है मोती
है वहाँ गौहर जहां गहराइयाँ हैं
बाढ़ ने ऐसी मचाई है तबाही
हर तरफ़ ही दिख रही बरबादियाँ हैं
मालोज़र की और ताक़त की वज़ह से
यूँ सियासत में दिखी मक्कारियाँ हैं
हिज्र का मौसम बदलता भी नहीं है
साथ में “‘आनन्द’ के तन्हाइयाँ हैं
– डॉ आनन्द किशोर