यूँ न समझो के मुहब्बत है उन्हें
यूँ न समझो के मुहब्बत है उन्हें
देख कर हँसने की आदत है उन्हें
मुस्कुरा के आज फिर गुजरे हैं वो
आज फिर कोई जरूरत है उन्हें
कौन पकड़े रोज की चालाकियां
कोई पछतावा न गैरत है उन्हें
जानकर अनजान बनकर फिर रहे
इन अदाओं में महारत है उन्हें
जब तलक है आदमी से फ़ायदा
तब तलक उनसे ही उल्फत है उन्हें
हाल दिल का जानते हैं वो मेरा
इश्क की अच्छी बशारत है उन्हें
प्यार की लहरों में डूबी सी ग़ज़ल
लगता है ‘सागर’ की हसरत है उन्हें