यूँ धीरे-धीरे दूर सब होते चले गये।
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यूँ धीरे-धीरे दूर सब होते चले गये।
हम दिल की पीड़ा अश्क से धोते चले गये।।
बड़ी ही बेरहमी से जज्बातों का कत्ल कर,
हर रिश्तों की अहमियत भी वो खोते चले गये।
ताउम्र साथ देने का वादा किया था जो,
कंटक हमारे राह पर बोते चले गये।
पलकों पर बिठाया जिसे अपना बनाया था,
नफरत का छूरा भोंकते चले गये।
कतरा-कतरा हर ख्वाब
जेब क्या फटी सभी रिश्ते-नाते गये बिखर,
जो कहते थे अपने हैं छोड़कर चले गये।
रिश्ते खून के सभी होते जा रहे धूमिल,
स्वार्थ लिप्त हो सभी हाथ छुड़ाते चले गये।
रिश्ते ना हुई कि पेंसिल की लिखावट जैसी,
जिसे भी देखो रबर से मिटाते चले गये।
जीवन में रिश्तों की अहमियत को मान कर,
हर रिश्तों पर कुर्बान हम होते चले गये।
? ? ? ? -लक्ष्मी सिंह ? ☺