यूँ चढ़े उन पे हैं शबाब के रंग
यूँ चढ़े उन पे हैं शबाब के रंग
गालों पर दिख रहे गुलाब के रंग
लिखने होंगे वो गीत जो भर दें
देश भर में ही इंकलाब के रंग
उम्र का रंग अब न बालों पर
कितने होने लगे खिजाब के रंग
देख तुमको बहक रहे हैं हम
आये असली हैं अब शराब के रंग
चलना होगा सँभल सँभल कर ही
मन लुभाते बहुत सराब के रंग
ज़िन्दगी को सहारा तो देते
पर न पक्के रहें ये ख्वाब के रंग
रुख किया आइने का उनकी तरफ
उड़ गये कैसे हैं जनाब के रंग
हमने पल पल बदलते देखे हैं
ज़िन्दगी तेरी इस किताब के रंग
‘अर्चना’ देख कर ही हैरां है
उनके बदले हुये जवाब के रंग
13-01-2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद