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3 Jan 2017 · 1 min read

यूँ ग़मों का न सिलसिला होता

गजल
बह्र-2122 1212 22
काफिया-आ रदीफ़-होता
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यूँ गमो का न सिलसिला होता
साथ तेरा अगर रहा होता।

लौटता फिर कभी न महफ़िल में
आप से यदि मुझे गिला होता।

ख़ामुशी बज़्म में नहीं होती,
उसका चरचा नहीं किया होता।

तोड़ता जो नहीं कली को वो
फूल अब तक खिला हुआ होता।

जो कमाता हराम की दौलत
अंत उसका नहीं भला होता।

डॉ. दिनेश चन्द्र भट्ट

Language: Hindi
315 Views
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