यूँ किस्तों में ये ज़िंदगानी लुटा दी
यूँ किस्तों में ये जिंदगानी लुटा दी
कहीं जाँ कहीं पे जवानी लुटा दी
बड़े नाज से माँ ने पाला था मुझको
नादानी में उनकी निशानी लुटा दी
संभाला बहुत पर न बस में रहा जब
सभी यादें तेरी पुरानी लुटा दी
पिघल ही गया मोम सा मैं भी आखिर
जो देखा तुम्हें बदगुमानी लुटा दी
मुझे रास आया खिजाओं का मौसम
तुम्हारे लिए रुत सुहानी लुटा दी
– ‘अश्क़’