युवा
आपने मारा जो थप्पड़, दंभियो के गाल पर।
सात पुस्ते खुश हुई, इस रुधिर के उबाल पर।।
महिमा मंडित कर रहे है,ये जरायम कर्म को।
मारो मारो मार डालो, इन निरा बेशर्म को।।
मैं सोचा अब तुम्हे, कोई अनादर खल्ता नहीं।
मर चुके हो जीते जी, अब खून उबलता नहीं।।
तुम में जीवन है युवा, यह देखकर मैं खुश हूं आज।
आनेवाले पीढ़ियां भी, कर सकेंगी तुम पे नाज़।।