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10 Jun 2023 · 1 min read

युवा लक्ष्यहीन हो रहा

भटक रहा , उलझ रहा
निराश तू , खामोश तू
अवसाद में, आक्रोश में
राजनीति का शिकार तू ।

फिर भी
बबंडर हो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।

धर्म की आड़ में
असभ्यता के जाल में
बाजार की शान में
युवा मलिन हो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।

नसा सर चढ़ रहा
धुंए में जीवन घुल रहा
काम वासना में खुद को खो रहा
अवसरवादियों का हथियार हो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।

घमंड सर चढ़ रहा
बाजार की बोली हो रहा
रिस्तों में कांटे वो रहा
होटल में अकेला सो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।

अपनी जड़ों से भाग रहा
धैर्य धीरज खो रहा
माया बाजार में लौकिक हो रहा
तकनीकी का दुष्प्रयोग हो रहा
युवा लक्ष्यहीन हो रहा ।

प्रशांत सोलंकी
नई दिल्ली -07

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