युवा दिवस विशेष
स्वामी विवेकानंद – एक ऐसा नाम, एक ऐसा व्यक्तित्व कि जिस पर सदैव सनातन धर्म और मां भारती को गर्व रहेगा । जी हां । पूरे ब्रह्मांड में स्वामी जी जैसे महान कर्मयोगी आत्मा को अपनी गोद में पाने का गौरव सिर्फ और सिर्फ भारत पुनीत एवं महान भूमि को प्राप्त हुआ । यह कोई साधारण बात नहीं है क्योंकि , स्वामी जी किसी भी दृष्टिकोण से साधारण नहीं थे । वे हर नजरिये से अद्वितीय, दिव्य एवं कर्मठ व्यक्तित्व के स्वामी थे । दुनिया की जब से उत्पत्ति हुई तब से असंख्य लोग इस पृथ्वी पर आए और चले गए परंतु उनमें चंद फीसदी लोग ऐसे थे जो जाते जाते अपनी छाप संसार के तन-मन पर छोड़ गए । स्वामी विवेकानंद ऐसे ही चंद लोगों में से एक थे । एक महान पुण्यात्मा बनकर उनके द्वारा किए गए सकारात्मकता के प्रयासों का ही फल है कि, आज भी उनका नाम विश्व पटल पर बड़े गौरव और सम्मान के साथ लिया जाता है । आज तकरीबन हर भारतवासी यह कहने हुए अपने आपको गौरान्वित महसूस करता है कि, स्वामी विवेकानंद हमारी माटी के लाल थे । आखिर उनमें ऐसा क्या था कि आज भी उनका नाम सुनते ही लोगों एक अद्भुत एहसास जाग उठता है ? इस प्रश्न का सबसे सटीक उत्तर यह है कि उनका हर एक अंदाज अपने आप में बड़ा विशेष था । उनकी हर एक कार्यशैली अद्भुत थी । उनके संदर्भ में और परिचर्चा से पहले उनके जीवन -वृतांत पर एक नजर –
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था । उनका प्रारंभिक नाम नरेंद्र दत्त था । नरेंद्र बचपन से ही तेजस्वी एवं कुशाग्र बुद्धि के थे ।प्रारंभिक जीवन में बड़ी ही गरीबी में होने के बावजूद वे बहुत ही दयालु, दानी एवं सेवाभाव की प्रवृत्ति के थे। उनकी आध्यात्म और सनातन धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा एवं आस्था उन्हें ब्रह्म समाज की ओर खींच ले गई लेकिन वहां पर उचित आत्मसंतोष की प्राप्ति न होने पर उन्होंने वहां जाना छोड़ दिया । बाद में किसी माध्यम से उन्हें सिद्ध एवं ज्ञानी आचार्य रामकृष्ण परमहंस के विषय में जानकारी मिली । नरेंद्र रामकृष्ण जी से तर्क-वितर्क के उद्देश्य से मिलने पहुंचे । चूंकि रामकृष्ण जी सिद्ध एवं दूरदर्शी थे सो उन्होंने पहली नजर में ही पहचान लिया कि यह नवयुवक मेरा सर्वोत्तम एवं सर्वश्रेष्ठ शिष्य साबित होना । नरेंद्र को भी रामकृष्ण जी के सानिध्य में वैचारिक एवं आध्यात्मिक आत्मसंतुष्टि की राह नजर आने लगी और यहीं से शुरु हुई नरेंद्र के विवेकानंद बनने की कहानी । यहीं पर सन्यास लेने के बाद नरेंद्र स्वामी विवेकानंद हो गए । एक शिष्य के रूप में उन्होंने अपने गुरुदेव के प्रति असीम एवं अटूट श्रद्धा एवं आस्था का परिचय दिया । उन्होंने ने अपने घर-परिवार एवं सुख – चैन विस्मृत कर अपना एक-एक पल अपने गुरु के नाम कर दिया । अपने गुरु के प्रति अटल निष्ठा ने उनका जीवन सफल कर दिया । गुरु जी की कृपा से इन्हें आत्म- साक्षात्कार का गौरव प्राप्त हुआ । महज 25 वर्ष की आयु में गेरूआ वस्त्र धारण कर चुके स्वामी विवेकानंद को वर्ष 1893 में धर्म परिषद में सनातन धर्म के प्रतिनिधि के रुप में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ जो अमेरिका के शिकागो में आयोजित था । बड़े परिश्रम के बाद इन्हें उस सभा को संबोधित करने का मौका मिला और इतिहास गवाह है कि, उस सभा में इनके द्वारा बोले गए एक-एक शब्द चमत्कारी , दिव्य, आलौकिक एवं ऐतिहासिक साबित हुए और तभी दुनिया को सनातन धर्म की के मूल सिद्धांत, विशेषताओं एवं महानताओं की समग्र जानकारी प्राप्त हुई साथ ही यह भी आभास हुआ कि वर्तमान परिदृश्य में सबसे दिव्य, आकर्षक एवं प्रखर वक्ता भारतवर्ष के पास है । भले ही तब स्वामी जी की आयु अन्य वक्ताओं के अपेक्षा में कम थी मगर इनके सिद्धांत, वक्तव्य की शैली एवं सतत अध्ययन से प्राप्त अनुभव के आगे सभी छोटे लगने लग गए ।
एक दार्शनिक के रुप में उन्होंने भारत को बहुत कुछ दिया । वे भारतीय समाज के उत्थान को सदैव तत्पर दिखे खासकर युवा वर्ग के समुचित विकास के लिए वे हरसंभव माध्यमों से निरंतर प्रयासरत रहे । भले ही ध्यान में लीन होने की क्रिया भारत में नयी नहीं थी लेकिन स्वामी जी ने निरंतरता से ध्यान को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाया और युवाओं से ध्यान की ओर जाने का आह्वान किया । एक महान संत, सनातन पुरोधा, गुरु भक्त एवं युवाओं के शाश्वत आदर्श स्वामी का सदैव यही मानना था कि भारतीय दर्शन एवं आध्यात्मिक विद्या संपूर्ण विश्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और वे इस बात कै बड़े जोर-शोर से कहते भी थे । उनकी इन्हीं दूरदर्शिता का परिणाम था कि विश्वभर के लोगों में उनके शिष्य बनने की होड़ सी मच गई थी ।
स्वामी जी ने दुनियाभर के दीन- हीन, दुखियों एवं लाचारों की सेवा – सुश्रुषा एवं सहायता के उद्देश्य को लेकर अपने गुरुदेव की दिव्य प्रेरणा से रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । इस मिशन की दुनियाभर में कई शाखाएं खोली गई एवं उसके माध्यम से स्वामी जी तथा उनके शिष्यों द्वारा सेवा- सहयोग-सहायता की भावना को बल दिया गया । आध्यात्मिक एवं वैचारिक क्षेत्र में स्वामी जी द्वारा एक प्रकार की अद्भुत क्रांति का सृजन हुआ था इसलिए स्वामी जी को क्रांतिकारी संत के रुप में भी संबोधित किया जाता है । अपने शानदार विचारों से दुनिया के हृदय पर राज करने वाले , अपनी उपस्थिति से सदैव दुनिया को गौरान्वित करने वाले एवं अपने कर्म से संपूर्ण जग में मां भारती का गौरव बढा़ने वाले इस महान क्रांतिकारी संत ने 4 जुलाई 1902 को इस संसार का त्याग कर दिया । उनका जाना इस संसार को स्तब्ध करने वाला एवं दुखों के सागर में धक्का देनेवाला था परंतु उनके शिष्यों एवं संपूर्ण विश्व ने उनके सिद्धांतों एवं विचारों में उनकी उपस्थिति का अनुभव किया । ऐसे महान पुण्यात्मा स्वामी विवेकानंद जी को उनकी जयंति पर कोटि- कोटि नमन ।
विक्रम कुमार
मनोरा, वैशाली