युवा आज़ाद
था वो बागी, पर बागी जैसे, उसके तेवर ना थे।
अंदर तूफान समेटे था, बाहर से वैसे कलेवर ना थे।।
अपनी पीड़ा, पीड़ा ना थी, पीड़ा देश गुलामी का था।
स्व दुख से दुखी नहीं था, दुख अंग्रेज सलामी का था।।
थे गरीब ना थी दर्द ए गरीबी, तन सुडौल मन फौलादी था।
था “आज़ाद” वह स्वयंसिद्ध मनु, एक लक्ष्य बस आज़ादी था।।