युद्ध सिर्फ प्रश्न खड़ा करता हैं [भाग९]
माना सब युद्ध खत्म हो जाते हैं ,
यह युद्ध भी खत्म हो जाएगा!
सब हाथ मिला लेंगे और
समझोता भी हो जाएगा !
गले लगाकर सब अपनी
तस्वीरे भी खिचवाँयेगें ,
चेहरे पर झूठी हँसी दिखाकर
सब मिलकर मुस्कुरायेगें!
पर क्या मन में जो चुभन रह गई,
क्या उसकी टीस कभी भी
जीवन भर मिट पाएगा !
जो दर्द छोड़ जाता है यह युद्ध ,
क्या कोई मरहम उसके
जख्म को भर पाएगा।
जो शहर उजड़ गया है,
क्या कभी पहले जैसा
वह बस पाएगा ,
क्या वह अपने दर्द को
कभी भूला पाएगा!
जिन लोगों ने अपनों को खोया है,
क्या कोई भी समझौता उनके ,
अपनों को लौटा पाएगा!
उसके मन में यह प्रश्न तो
हमेशा बना रहेगा!
यह समझौता पहले भी तो
हो सकता था!
इस युद्ध को रोका भी
तो जा सकता था,
मानवता की रक्षा के लिए
युद्ध के बिना भी तो हल
निकाला जा सकता था!
जिसकी दुनियाँ उजड़ गई
जिसका घर हो गया बरबाद
क्या कोई समझौता उसके
मन के दर्द को मिटा पाएगा!
वह कभी भी क्या इस समझौते
को दिल से अपना पाएगा!
बारूदी के इस ढेर में जो
इंसानियत मर गई ,
क्या कोई समझौता उस
इंसानियत को जिंदा कर पाएगा!
जो हैवान बन गए थे इस युद्ध में,
क्या इंसान बनकर वह,
खुद को माफ कर पाएगे!
क्या खून से सने हाथों से
वह कभी खा पाएगा!
होते है कई युद्ध,
खत्म भी हो जाते हैं,
पर अगले किसी युद्ध के लिए,
वह बीज छोड़ जाते है,
कहाँ कभी किसी युद्ध ने आजतक ,
किसी प्रश्न का उत्तर हल किया है !
उसने सिर्फ और सिर्फ प्रश्न
ही तो खड़ा किया है!
~अनामिका