युद्ध सिर्फ प्रश्न खड़ा करता है [भाग१]
एक नन्हा बच्चा जो युद्ध में
अपने माँ-बाप को खो चुका था!
अपने नन्हें-नन्हें हाथों से
माँ का आँचल खीच रहा था !
कभी पिता का हाथ को पकड़ उसे उठा रहा था!
माँ उठ जाओ, माँ उठ जाओ
वह बार-बार चिल्ला रहा था !
माँ मुझे भूख लगी हैं ,
यह बोल उसे जगा रहा था!
माँ को न जागते देख ,
वह इधर उधर देख रहा था !
अब क्या करे उसकी समझ में,
कुछ भी तो नहीं आ रहा था!
माँ को नही उठते देखकर वह,
पिता के पास दौड़ा- दौड़ा आया,
और पिता का हाथ पकड़ कर
उसे उठाने में लग गया।
पापा उठो- उठो मुझे भूख लगी है,
माँ भी देखो उठ नहीं रही है!
मुझे प्यास भी बड़ी जोर की लग रही है ,
एैसा कहकर वह पिता को जगाने में लग गया था!
उस अभागे को क्या पता था,
कि अब वह दोनों कहाँ उठ पाएगें,
और कहाँ अपने हाथों से
उसको अब वह खिला पाएँगे ?
वह अभागा तो अभी भी ,
उन दोनों को जगाने में लगा हुआ था!
उसको कहाँ पता था की वह
अब आनाथ हो गया था ?
वह सोच ही पाता कि
यह सब क्या हो रहा है !
तब तक भुख के मारे वह मौत
का शिकार हो गया था!
युद्ध ने इंसानियत को
शर्मसार कर दिया था !
कहाँ किसी युद्ध ने
किसी को खुशी दिया है !
कहाँ कभी किसी युद्ध ने कभी ,
किसी प्रशन का हल किया है !
वह तो सिर्फ और सिर्फ ,
प्रशन ही तो खड़ा किया है!
~अनामिका