युद्ध के साए तले …
भयंकर युद्ध के साए में जी रहे व्यक्ति को यूं लगे ,
जैसे दो धारी तलवार के बीच फंसी बेबस जिंदगी ।
ना जाने अगले मोड़ पर कब मिल जाए मौत ,
कौन सा श्वास ले रही है और कितनी है जिंदगी ।
हथियारों से लैस धरती पर खून के प्यासे इंसान,
और आसमान से शोले बरसाते जेट विमान ।
उफ़ तौबा ! जीतेजी नर्क में जी रही है जिंदगी ।
सहमा सहमा सा आलम,तबाही का मंजर है ,
आंसुओं और आहों का हार बनी है जिंदगी ।
किस कदर अपने अपने अहम में दीवाने हो गए ,
अंजाम ए बर्बादी ना सोचे मिटाए जा रहे है जिंदगी।
अब इन युद्ध प्रेमियों ,हिंसा के पुजारियों को कोई समझाए ,
ईश्वर की इस रचना इंसान और प्रकृति को मिटा रहे हो
कैसे होगी तुम्हारी आने वाली नस्लों की जिंदगी ।
अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर कुछ तो विचार करो ,
बंद करो यह युद्ध और बचाओ मनुष्य और जीवों को जिंदगी ।
युद्ध से सहमा हुआ व्यक्ति कर रहा है बार बार यह बंदगी ।