युद्ध के मायने
युद्ध में लड़ते हैं दो देश/या कई देश
आपस में
जैसे वह जन्मजात लड़ाके हों
सभ्यता का अनवरत विकास होता गया
पर यह तो अभी भी आदिम हैं
जंगली हैं/आखेटक हैं
और बर्बर भी
जो विषचुभे नुकीले तीरों से
या फिर पत्थर के औजारों से
मार देंगे सामने वाले को
या जला देंगे दवानल में
विकसित हो रही सभ्यता और संस्कृति को ।
युद्ध लड़ा जाता है
विजय प्राप्त करने के लिए
या अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए
अपने बाजार को विस्तारित करने के लिए
‘अर्थ’ ही ‘अनर्थ’ का कारण बनता है
युद्ध में संलिप्त देश/देशों के अतिरिक्त
नेपथ्य में एक देश ऐसा भी होता है
जो युद्ध नहीं करता
कराता है
दूर बैठे टीले पर मंद-मंद मुस्कराता है
नीचे लड़ते हुए लोग मर-कट रहे होते हैं
कुंआ भरता रहता है रक्त से
बेतरतीब लाशों से
और टीले पर बैठा बनिया अपने सौदे के लिए
वृहद बाजार मिलने पर इतरा रहा होता है
और वह तीसरा देश कुछ इस प्रकार बढ़ाता है अपना साम्राज्य
जो लाशों का सौदागर होता है
बाजारवाद का पोषण करता है
टीले पर बैठा तीसरा देश
अपने बाजार को बढा़ता है
वह पहुँचाता है युद्ध सामग्री की खेप
युद्धरत देशों को चुपके से
उनकी पीठ थपथपाता है
और चुपके से कान में फुसफुसाता है
आगे बढ़ो पार्थ, मैं हूँ न ।
यह वही है
जो शांति का संदेश चहुओर फैलाता है
और नेपथ्य से युद्ध का संचालन करता है
यह विडम्बना ही तो है
यह उन्हें भी देता है धन
जो विश्व शांति के लिए
संगठित करते हैं देशों को
अशांति के परिवेश में
“शांति वर्ष” मनाते हैं
गले मिलते हैं
वादे-दर-वादे होते हैं
होते हैं संयुक्त हस्ताक्षर उन सहमति-पत्रों पर
जिसके मूल में होता है
युद्ध से पृथक् रहने का वचन
यह वचन कहाँ निभ पाता है
मंच से उद्घोष के बाद
वैराग्य का भाव
हो जाता है समाप्त
और फिर प्रारम्भ हो जाती है
एक-दूसरे का गला काटने की अन्तहीन प्रतियोगिता
युद्ध की क्रूरता ऐसे ही आगे बढ़ती है ।
यह कोई नई बात नहीं
ऐसा होता आया है
सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ही
दिए वचन से मुकरना
यह छद्म सूत्र है राजनीति का
यदि वचन निभाने की संस्कृति विकसित हो
मानवता को बचाने के लिए
फिर युद्ध कहाँ होंगे
इसे घटित कराते हैं
वही देश, जो वचन देते हैं विश्व शांति का
यह वही तीसरा देश होता है
जो बढ़ाता है अपने बाजारवाद को
जो मन में पाले रहता है
वैसा ही करता है
और स्थापित करता है स्वयं को
एक ‘शक्ति’ के रूप में
जो होती है मृगमरीचिका।
युद्ध की मर्यादा होती है
युद्ध के रक्तरंजित इतिहास में
‘महाभारत’ और ‘राम-रावण युद्ध’ को देखें
मर्यादित युद्ध की छवियाँ दिखेंगी
पर अब दौर बदल गया है
‘प्रथम’ व ‘द्वितीय’ विश्वयुद्ध के विनाश से दुनिया भिज्ञ है
युद्ध की मर्यादा कैसे तार-तार हुई
और कैसे-कैसे संत्रास को झेला है हमारी संतति ने
युद्ध एक अनावश्यक अध्याय है
जो लिखा नहीं जाना चाहिए
घटित नहीं होना चाहिए
लोग मरते हैं निरपराध/अनचाहे/असमय
युद्ध के चपेट में आकर
जो शांति से जीवन जीने के लिए
अवतरित हुए थे
इस महान ब्रह्माण्ड में, कहां-कहां कहते।
युद्ध होते रहे हैं
होते रहेंगे
तब तक, जब तक हम अपने घरों में नहीं झाकेंगे
नहीं रोकेंगे उस लड़ाई को जो हमारे घरों में होती हैं
सभी अपने ही तो होते हैं
घरों की यही लड़ाई
धीरे-धीरे वृहद् युद्ध का वाहक बन जाती है
युद्ध की भूमिका हम ही लिखते हैं
अध्याय कोई और
और एक तीसरा आदमी
व्यापार करता है
हमारी भूमिका का
उस अध्याय का जो
वह नेपथ्य में बैठकर लिखवाता है।