युद्ध के उन्माद में है
न जाने कौन सा आनन्द इस अतिवाद में है
जिसे देखो वही अब युद्ध के उन्माद में है
कभी भी युद्ध से होती नहीं है हल समस्या
समर्थक युद्ध का फिर भी बड़ी तादाद में है
कहीं भी जंग हो अक्सर सज़ा पाते हैं बेबस
विगत की त्रासदी अब तक हमारी याद में है
सुना है जब से मैंने यह कि जल्दी युद्ध होगा
मैं सच कहता हूं तब से मन मेरा अवसाद में है
तुम अपनी चुप्पियां तोड़ो मैं अपनी बात रक्खूं
नहीं है वो मज़ा चुप्पी में जो संवाद में है
— शिवकुमार बिलगरामी