युग परिवर्तन
हर्षित है मन मेरा देखकर
नई सहस्त्राब्दी के
आगमन की शोभा को
युग परिवर्तन को
चन्द्रमा और सूर्य को
बंधक बनाने की
मानव अभिलाषा की
कोरी कल्पनाओं से।।
हर्षित है मन मेरा देखकर
ग्रह उप ग्रहों से
विजय रथ पर बैठा
कितना यह आतुर है
तोड़ने को सीमाएं
धरती और अम्बर की
मानव यह उपद्रवी
कितना यह व्याकुल है
विखण्डित करने को
क़ुदरत की रचनाएँ।।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”
?(कल्पना ही मेरा जीवन) से
नोट~
1जनवरी सन् 2000ई. को इक्कीसवीं सदी के आगमन पर कही गयी विशेष कविता जो उस वर्ष कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई थी।