युगों के घुप अँधेरे को जो बल से चीर पाता है।
गज़ल
1222……1222…..1222……1222
युगों के घुप अँधेरे को जो बल से चीर पाता है।
हजारों वर्ष वो सूरज उदय हो जगमगाता है।
खुदा देता है जिसको काम दुनियाँ की भलाई का,
हजारों में कोई बन के मसीहा एक आता है।
जो देता मुफलिसों को मुस्कुराने की वजह जंग में,
वो खुद भी जिंदगी में प्यार पाता मुस्कुराता है।
ये सूरज चाँद तारे पेड़़ पर्वत जल जमीं अंबर,
ये सोचो हम सभी के वास्ते रब क्यों बनाता है।
है कितने वार सहता एक पत्थर प्यार पाने को,
वही फिर राम शंकर बन युगों तक पूजा जाता है।
हुए जो प्रेम में पागल न चिंता मरने जीने की,
वो प्रेमी प्रेमवश मीरा या राधा बन ही जाता है।
…….✍️ प्रेमी